बेटियां बोझ नहीं – एक नया संदेश
समस्तीपुर/मोहिउद्दीननगर में अब बेटियों को कभी अभिशाप नहीं माना जाएगा। यहाँ के लोगों ने सामाजिक बदलाव की ओर एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बेटियों के विवाह की सामूहिक जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है। इस अवसर पर दहेज मुक्त विवाह का आयोजन करते हुए यह संदेश दिया गया कि बेटियां सिर्फ मां-बाप की मान नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज की स्वाभिमान हैं।
आयोजन की झलक
शुक्रवार की देर रात, नौ दिवसीय राम कथा के उपरांत एक ही मंडप में अलग-अलग घरों से आए 21 निर्धन कन्याओं का कन्यादान किया गया। आयोजन के दौरान भले ही वर और वधू पक्ष के लोग विभिन्न जगहों से आए, लेकिन सभी के लिए मंगलगान का एक ही वातावरण बना रहा।
अंदौर हाई स्कूल के परिसर में बड़े आकर्षक ढंग से सजाए गए मंडप में, विभिन्न क्षेत्रों से आयी बारातों ने मदुदाबाद में एकत्रित होकर नाचते-गाते हुए समारोह में हिस्सा लिया। सभी के ठहरने, नाश्ते, भोजन आदि की समुचित व्यवस्था की गई थी। निर्धारित मुहूर्त का इंतजार करते हुए वर व वधू पक्ष के लोग एक साथ बैठकर पंडित राजीव झा की अगुवाई में वैवाहिक मंत्रोच्चार सुनते रहे।
पारंपरिक रस में बांधता दांपत्य सूत्र
इस आयोजन में 21 कन्याओं का कन्यादान 21 वरों के साथ पारंपरिक मांगलिक गीतों के बीच किया गया। वर-वधुओं ने शहनाइयों की मधुर धुनों के बीच अग्नि के सात फेरे लेकर जनम जनम तक साथ रहने की कसमें खाईं। वातावरण ऐसा पवित्र था जैसे राम और सीता का विवाह हो चुका हो।
शनिवार की सुबह, हजारों लोगों ने सुखमय दांपत्य जीवन की कामना करते हुए कन्याओं को गले लगाकर विदाई दी। साथ ही, दानकर्ताओं ने जीवनोपयोगी वस्तुएं उपहार स्वरूप भेंट कीं।
दहेज मुक्त वैवाहिक आयोजन का संदेश
यह दहेज मुक्त विवाह आयोजन स्थानीय लोगों को उत्तरदायित्व के बोध, फिजूल खर्ची पर रोक और सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है।
- बेटियां समाज की शान:
बेटियों को अब केवल परिवार की ही नहीं, बल्कि समाज की भी स्वाभिमान माना जाएगा। - समूहिक जिम्मेदारी:
समाज ने मिलकर इस बात का संकल्प लिया कि बेटियों के विवाह की जिम्मेदारी सम्पूर्ण समाज उठाएगा, जिससे दहेज की प्रथा समाप्त हो सके। - पूर्व में लिए गए संकल्प:
स्थानीय समाजसेवी एवं श्रद्धालुओं ने सर्वकल्याणी दुर्गा मंदिर के दिवंगत सचिव चंद्रगुप्त चांडक के लिए दिए गए संकल्प को पूरा करते हुए यह आयोजन आयोजित किया, जो आगे भी चलता रहेगा।
प्रेरणादायक संदेश और सामाजिक बदलाव
इस दहेज मुक्त आयोजन ने स्थानीय लोगों में यह विश्वास पैदा किया है कि बेटियों का जन्म कभी भी अभिशाप नहीं, बल्कि समाज की अमूल्य पूंजी है।
- सामाजिक एकता:
सभी जातियों एवं वर्गों के लोगों ने एक साथ मिलकर इस कार्यक्रम में भागीदारी निभाई, जिससे एक सकारात्मक सामाजिक बदलाव की शुरुआत हुई। - जिम्मेदारी का संकल्प:
इस आयोजन में सहभागी लोगों ने दहेज मुक्त समाज बनाने का संकल्प लिया, जिससे भविष्य में बेटियों के विवाह में आर्थिक बोझ और सामाजिक दबाव को समाप्त किया जा सके।
निष्कर्ष
समस्तीपुर/मोहिउद्दीननगर में दहेज मुक्त विवाह के इस आयोजन ने समाज में बेटियों के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। बेटियां अब केवल परिवार की मान नहीं, बल्कि समाज का गौरव मानी जाएंगी। इस आयोजन से न केवल आर्थिक बोझ में कमी आएगी, बल्कि सामाजिक एकता और सद्भाव का संदेश भी फैल जाएगा।
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